Sunday, 10 March 2013

kyun ki bare bare halls mein...chhoti chhoti baatein to hoti rehti hain


"hall ke liye" is by far the most senti metaphor used in kgp.
So inevitably the question arises" what constitutes a hall?"
This post touches some of those shades of grey.

लफ्ज़ गायब थे, साँसे दबी सी थी,
होंठ सूखे, जान हलख पर, चेहरे पर हँसी सी थी.
उस नादान के पहलू को  ज़रा तबीयत से देख लो,
कहीं तुम्हे वो चेहरा कुछ  पहचाना सा न लग जाए,
ढूँढने से उन आँखों में, खोया याराना न मिल जाए.
वह ख़ुदकुशी नहीं  कर रहा, हौंसलो की अर्थी तो कब की निकल चुकी.
और जब हौसलों की अर्थी निकली तो उसे न मिलने यारों के चार काँधे थे.
पर तुम्हे  याद तो  होगा ही पिछली बरस तुमने  दिए कितने बाँधे थे.

आजाद था वो, सो आजादी ही  भा  गयी उसे.
पतंग सा मन था, खींचते उम्मीदों की डोर थी,
किन्तु गम न था क्यूंकि बाजू में यार-पतंगों का शोर था.
पर जब यार-पतंगों की टोली भी  निकल गयी आगे,
तब वही मदमस्त पवन थकाने लगी, लगा अब और कितना भागे.
अब तो उसे चुभते उन्ही सखों  के मांझे थे,
पर तुम्हे याद तो होगा ही पिछले बरस तुमने दिए कितने बाँधे थे.

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